हर कहानी कुछ कहती है... पृष्ठ आठ

May 23, 2020
हर कहानी कुछ कहती है..  

स साल वर्माजी का सात वर्षीय बेटा कक्षा दूसरी में आ गया.... कक्षा में हमेशा से अव्वल आता रहा है ! पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो वे उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने केलिए बाज़ार ले गये !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया कि पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी भी  इस साल काम आ  सकते हैं! 
अपने जूतों की बजाय उसने अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए पिताजी  को नया चश्मा बनवाने को कहा !
वर्माजी को लगा वह अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है, उन्होने बेटे को कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचे.....दुकानदार ने बेटे के नाप की सफ़ेद शर्ट निकाली ...पहन कर देखने पर शर्ट एकदम फिट थी.....फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!!!

वर्मा जी ने बेटे से कहा : बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ? बेटे नेकहा :पिता जी मुझे शर्ट निक्कर केअंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी ...... पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा !

वर्मा जी  मौन रहे ! घर आते वक़्त उन्होनें  बेटे से पूछा : तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ?
बेटे नेकहा: पिता जी मैं अक्सर देखता हूँ  कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को
छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पर पैसे खर्च कर दिया करते हैं ! गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं.....जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है.....मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं ! पिता जी मैं यह बताना चाहता हूं कि मेरी कोई जरूरत इतनी जरुरी और बड़ी नहीं जिसे पूरी करने के लिए कभी जीवन में आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर बनना पड़े, मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर वर्मा जी निरूत्तर थे, आज उन्हें पहली बार अपनी ईमानदारी का इनाम मिला था !!
आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे...


ह कहानी कहती है कि.... हमेँ हमारी आवश्यकताएँ ओर महात्वाकांक्षाएँ ही गलत रास्ते पर जाने के लिए मजबूर करती हैं  यदि हम उनको ही सीमित कर लेँ तो जीवन ईमानदारी से गुजारा जा सकता हैं...  

डॉ. बालशौरि रेड्डी और हिन्दी प्रण

May 23, 2020

डॉ. बालशौरि रेड्डी और हिन्दी प्रण  


बात उस समय की है जब 'हिन्दी प्रचार सभा' के रजत जयंती के अवसर पर महात्मा गांधी 1946 में मद्रास आए थे| इसी सभा में आंध्र प्रदेश के एक गाँव से एक 18 वर्षीय युवक भी शामिल हुआ था| उस युवक की रुचि संभवत: सभा में कम और गांधीजी में ज्यादा थी| हाँ, वह युवक भी अन्य लोगों की तरह गांधीजी का ऑटोग्राफ भी लेना चाहता था| युवक ने गांधीजी का ऑटोग्राफ तो लिया, मगर खुशी के स्थान पर उसके चेहरे पर निराशा की लकीरों को पढ़ा जा सकता था| गांधीजी ने अपने ऑटोग्राफ में लिखा थाµ'मो क  गांधी'

इस ऑटोग्राफ को पाने के लिए युवक को पाँच रुपए खर्च करने पड़े थे| युवक को पाँच रुपए ख़र्च करने का मलाल नहीं था| लेकिन निराशा की बात यह थी कि वह इस ऑटोग्राफ को यदि अपने गाँववासियों को दिखाएगा, तो कोई भी उसे पढ़ नहीं सकता था| क्योंकि उसके गाँव में किसी को भी हिन्दी नहीं आती थी| साथ ही ऑटोग्राफ के अक्षर इतने गंदे थे कि युवक को लगा कि कोई विश्वास ही नहीं करेगा कि ये अक्षर गांधीजी के हैं| पैसे भी लगे, काम भी नहीं हुआ| 

सभा का उद्घाटन हुआ| गांधीजी अपना भाषण देने के लिए आगे आए| उन्होंने कहा, 'बहुत जल्द हिन्दुस्तान आजाद होने जा रहा है| हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा हिन्दी होगी| मैं युवा पीढ़ी से अपील करता हूँ कि वे अभी से हिन्दी सीखें ताकि हिन्दुस्तान के आजाद होते ही सारा राजकाज हिन्दी में कर सकें| अगे्रजी विलायत की भाषा है| वह कदापि हमारी राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती|' गांधीजी के ये शब्द युवक  के कानों में गूँजने लगे| युवक को गांधीजी का यह संदेश मंत्र जैसा प्रतीत हुआ| इस संदेश को सुनने के पश्चात्र अनायास युवक का विषाद हर्ष में बदल गया| उसी क्षण तेलुगुभाषी युवक ने 'हिन्दी' सीखने का प्रण लिया और विशारद, साहित्यरत्न और साहित्यालंकार की परीक्षाएं उत्तीर्ण की. हिंदी सीखने के लिए काशी और प्रयाग गए जहां उनका परिचय बड़े साहित्यकारों से हुआ। कल के तेलुगुभाषी युवक आज के हिन्दी और तेलुगु के यशस्वी साहित्यकार डॉ॰ बालशौरि रेड्डी जी  है. उनका सम्पूर्ण  जीवन हिंदी लेखन के प्रति समर्पित रहा... 


 साभार 
डॉ  गिरिराजशरण अग्रवाल



हर कहानी कुछ कहती हेै...पृष्ठ सात

May 22, 2020

हर कहानी कुछ कहती है ... 

“एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को गुस्से में भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया | उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा |


संत ने किसान से कहा , ” तुम यहाँ बिखरें हुए सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें सड़क  के बीचो-बीच जाकर रख दो” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया|
तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को  वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे| और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा| 

तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते|

हमारा स्वंय पर नियंत्रण होना चाहिए और हमें यह पता होना चाहिए कि हम क्या बोल रहे है, अन्यथा हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा|
ह कहानी कहती है कि... “ अगर हम मीठा और सकारात्मक ही बोलेंगे तो शायद हमको कभी भी यह नहीं सोचना पड़ेगा कि हम क्या बोल रहे है| अगर हमें गुस्सा आता है तो सबसे बेहतर यही होगा कि उस वक्त हम कुछ भी न बोलें क्योंकि उस वक्त हमारी वाणी को हम नहीं बल्कि हमारा क्रोध (Anger)नियंत्रित करता है|”

डॉ. कुमार विश्वास और चरित्रवान- चरित्रहीन चाय प्रसंग।

May 22, 2020
अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस पर


 डॉ. कुमार विश्वास एम०ए० कर रहे थें तो एक बार हिंदी के एक महान आलोचक-निबंधकार व बड़े आचार्य से मिलने गये  थे ! उन्होंने नाम बताना जरूरी नहीं समझा इसलिए उजागर नहीं किया ख़ैर वो आगे बताते हैं कि  भेंट से पहले उन्होंने उन्हें अनेक पत्र लिखे थे , और अपनी कविताएँ व लेख भेजे थे ,तब जाकर आचार्य जी ने मिलने का थोड़ा समय दिया था ! 

आचार्य जी मिले और थोड़ी ही देर में डॉ. कुमार विश्वास कि मासूम अल्पज्ञ-चपलता पर मोहित हो गए ! रीझकर बोले “बालक ! चाय पियोगे ?”उन्होंने  कहा “आचार्य यह तो प्रसाद होगा, आपके हाथ का तो विष भी अमृत है “ आचार्य जी हंसकर बोले “चरित्रवान चाय पियोगे या चरित्रहीन ?” डॉ. कुमार विश्वास  चारों खाने चित! 

डॉ. कुमार विश्वास ने कहा “आचार्य मुझ मूरख को इतना ज्ञान कहाँ ? आप ही चाय की इन दोनों कोटियों से परिचय कराइए ?” आचार्य जी बोले “बेटा ! जो चाय चीनी-मिट्टी के कप में आती है वो चरित्रहीन है, हर बार धुल-पूछ कर नए रूप में, नए साज-सिंगार में आकर नए प्रेमी के अधर-पल्लव को चूमती है ! पर जो चाय कुल्हड़ में पी जाती है वह तो पंचतत्वों से एक बार स्वयं को तपाकर तैयार करती है और किसी अधर से एक बार जब छू जाए तो उसके बाद अपना नश्वर शरीर त्याग देती है और पुनः अग्नि में तपकर नया जन्म लेती है नए प्रेमी के अधर छूने के लिए “
डॉ. कुमार विश्वास कहते  है कि पता नहीं उनकी इस व्याख्या का निहितार्थ क्या था पर हाँ उस दिन से कुल्हड़ की चाय से इश्क़ हो गया.!



साभार 
डॉ. कुमार विश्वास


ISSN-हिन्दी सिनेमा के झरोखे से किन्नर समाज

May 21, 2020

हर कहानी कुछ कहती हेै...पृष्ठ छ:

May 21, 2020


हर कहानी कुछ कहती है....

दो चींटियाँ थी , एक नमक के ढेर पर बिल बना कर रहती थी, और दूसरी चीनी के ढेर पर बिल बना कर रहती थी ! इसलिए नाम पडा़ sweety और salty!  दोनों में बड़ी मित्रता थी ! दोनों हर दिन एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछ कर अपना अपना कार्य करती थी !
एक दिन salty ने sweety से कहा " बहन ना जाने मेरी जुबान को क्या हो गया है हर चीज कड़वी लगाती है मेरी जुबान का तो जैसे स्वाद ही बदल गया है "!
sweety ने हँस कर कहा " बहन तुम हर समय नमक के ढेर पर रहती हो इस कारण हो सकता है तुम्हारी ज़ुबान का स्वाद कड़वा हो गया हो ! इस लिए कुछ दिन मेरे पास आ कर रहो, तुम्हारी ज़ुबान का स्वाद मीठा हो जाएगा"!
salty को यह बात बहुत अच्छी लगी ! वह बोली " सही कह रही हो बहन में कुछ समय तुम्हारे साथ व्यतीत करूंगी शायद सब सही हो जाये" !
कुछ समय पश्चात salty sweety के साथ रहने लगी ! sweety ने उसका भरपूर्वक स्वागत किया ! उसे चीनी भरे मिस्ठान खिलाये ! कुछ दिनों बाद salty बोली "बहन में तुम्हारी आभारी हूँ की तुमने मुझे इतना सम्मान दिया पर लगता है मुझे कोई बीमारी हो गई है ,तुमने मुझे इतने मिस्ठान खिलाये पर ना जाने क्यों अभी भी मेरी जुबान का स्वाद वैसे का वैसा यानि कड़वा ही है "!
sweety ने कुछ देर सोचा फिर मुस्कुरा कर बोली " बहन जरा अपना मुह तो खोलो "salty ने अपना मुह खोला ! Sweety ने देखा की



उसके दांतों में नमक के कई कण लगे हुए है ! उसने उसके सारे दांतों की सफाई की और सब नमक के कणों को साफ़ कर बाहर निकल दिया !फिर उसने उसे चीनी से बने विभिन्न प्रकार के मिस्ठान खिलाये !अब की बार salty को वो मिस्ठान बड़े मीठे और स्वादिस्ट लगे ! उसने भरपूर्वक मिष्ठानों का स्वाद लिया !

ह कहानी कहती है कि... हमें तब तक किसी की अच्छाई नजर नही आ सकती जबतक हमारे मन मेँ उसके प्रति कडवाहट भरी हुई हो अगर जुबान पर कड़वाहट हो तो मीठेपन का स्वाद कैसे आ पायेगा I  इसलिए मिठास पाने के लिए सर्व प्रथम स्वयम का मीठा होना आवश्यक हेै I




हर कहानी कुछ कहती है..पृष्ठ पांच

May 20, 2020

हर कहानी कुछ कहती है....

पढ़ाई पूरी करने के बाद टॉपर छात्र बड़ी कंपनी में इंटरव्यू देने के लिए पहुंचा....
छात्र ने पहला इंटरव्यू पास कर लिया...फाइनल इंटरव्यू डायरेक्टर को लेना था...
डायरेक्टर को ही तयकरना था नौकरी पर रखा जाए या नही।



डायरेक्टर- "क्या तुम्हे पढ़ाई के दौरान कभी स्कॉलरशिप मिली...?"
छात्र- "जी नहीं..."
डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."
छात्र- "हाँ श्रीमान ।"
डायरेक्टर- "तुम्हारे पिता जी काम क्या करते है?"
छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते है..."
ये सुनकर डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ दिखाना..."
छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...
डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी पिता के कपड़े धोने में मदद की...?"
छात्र- "जी नहीं, मेरे पिता हमेशा यही चाहते रहे है कि मैं स्टडी करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें पढ़ूं...हां एक बात और, मेरे पिता मुझसे कहीं ज़्यादा स्पीड से कपड़े धोते है..."
डायरेक्टर- "क्या मैं तुमसे एक काम कह सकता हूं...?"
छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."
डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिता के हाथ धोना...फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."
छात्र ये सुनकर प्रसन्न हो गया...उसे लगा कि जॉब मिलना पक्का है,तभी डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...
छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी पिता को ये बात बताई और अपने हाथ दिखाने को कहा...
पिता को थोड़ी हैरानी हुई...लेकिन फिर भी उसने बेटे की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके
हाथों में दे दिए...
छात्र ने पिता के हाथ धीरे-धीरे धोना शुरू किया...
साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...पिता के हाथ रेगमार की तरह सख्तऔर जगह-जगह से कटे हुए थे...यहां तक कि कटे के निशानों पर जब भी पानी डालता, चुभन का अहसास ता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...।
छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये वही हाथ है जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...
पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडमिक करियर की एक-एक कामयाबी का...
पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने साथ ही पिता के उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले... पिता रोकते ही रह गये, लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...



उस रात बाप बेटा ने काफ़ी देर तक बात की... अगली सुबह छात्र फिर जॉब के लिए डायरेक्टर के ऑफिस में था...डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...

डायरेक्टर- "हूं तो फिर कैसा रहा कल घर पर... क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"
छात्र- " जी हाँ श्रीमान कल मैंने  जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...
नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है... मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...
नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...
नंबर तीन.. . मैंने रिश्ते की अहमियत पहली बार इतनी शिद्धत के साथ महसूस की..."

डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...मैं उसे जॉब देना चाहता हूं  जो दूसरों की मदद की कद्र करे, ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे. ऐसा शख्स जिसने
सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो... मुबारक हो, तुम इस जॉब के पूरे हक़दार हो...


ह कहानी कहती है कि....आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें, बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें... लेकिन साथ ही बच्चों को प्रत्येक परिस्थिति से  रूबरू कराते रहे ताकि  वो हर चीज की कद्र करे ।



हर कहानी कुछ कहती है...पृष्ठ चार

May 19, 2020




हर कहानी कुछ कहती है...  

एक राजा को उपहार में किसी ने बाज  के दो बच्चे भेंट किये, वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे ,और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।


 जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।  राजा ने देखा कि दोनों बाज  काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से  भी ज्यादा शानदार लग रह थेे  ।

 राजा ने देखभाल कर रहे  आदमी से कहा,  मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का ईशारा करो ।

“ आदमी ने  ऐसा ही किया।

 ईशारा मिलते ही दोनों बाज  उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज  आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ  गया जिससे वो उड़ा था।

 ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा...

“क्या बात है जहाँ एक बाज  इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”,
राजा ने सवाल किया।

” जी हुजूर ,इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल  को छोड़ता ही नहीं।”

राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज  को भी उसी तरह उड़ता देखना चाहते थे।

 अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान  करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस  बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों ईनाम  दिया जाएगा।

 एक  से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे , पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज
 का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।

 फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर
 दिखाया था। वह व्यक्ति एक किसान था।


 अगले दिन वह दरबार में  हाजिर हुआ। उसे ईनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा , ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे
 कर दिखाया।

“ “मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था,और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा। “

ह कहानी कहती है कि....हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदि हो जाते हैं  कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की , कुछ बड़ा करने की काबिलियत को भूला बैठते है,  एक बार ज़रूर सोचिये  कि कहीं हमें भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिस पर बैठने की आदत हो गई है!!!

ISSN-गोपालदास सक्सेना 'नीरज' और पाती विधा I

May 19, 2020

ISSN- कोंकणी भाषी हिन्दी साहित्यकार दामोदर माऊजो I

May 19, 2020