हर कहानी कुछ कहती है ...
“एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को गुस्से में भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया | उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा |
संत ने किसान से कहा , ” तुम यहाँ बिखरें हुए सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें सड़क के बीचो-बीच जाकर रख दो” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया|
तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को वापस ले आओ”
किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे| और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा|
तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते|
हमारा स्वंय पर नियंत्रण होना चाहिए और हमें यह पता होना चाहिए कि हम क्या बोल रहे है, अन्यथा हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा|
यह कहानी कहती है कि... “ अगर हम मीठा और सकारात्मक ही बोलेंगे तो शायद हमको कभी भी यह नहीं सोचना पड़ेगा कि हम क्या बोल रहे है| अगर हमें गुस्सा आता है तो सबसे बेहतर यही होगा कि उस वक्त हम कुछ भी न बोलें क्योंकि उस वक्त हमारी वाणी को हम नहीं बल्कि हमारा क्रोध (Anger)नियंत्रित करता है|”
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