अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस पर
जब डॉ. कुमार विश्वास एम०ए० कर रहे थें तो एक बार हिंदी के एक महान आलोचक-निबंधकार व बड़े आचार्य से मिलने गये थे ! उन्होंने नाम बताना जरूरी नहीं समझा इसलिए उजागर नहीं किया ख़ैर वो आगे बताते हैं कि भेंट से पहले उन्होंने उन्हें अनेक पत्र लिखे थे , और अपनी कविताएँ व लेख भेजे थे ,तब जाकर आचार्य जी ने मिलने का थोड़ा समय दिया था !
आचार्य जी मिले और थोड़ी ही देर में डॉ. कुमार विश्वास कि मासूम अल्पज्ञ-चपलता पर मोहित हो गए ! रीझकर बोले “बालक ! चाय पियोगे ?”उन्होंने कहा “आचार्य यह तो प्रसाद होगा, आपके हाथ का तो विष भी अमृत है “ आचार्य जी हंसकर बोले “चरित्रवान चाय पियोगे या चरित्रहीन ?” डॉ. कुमार विश्वास चारों खाने चित!
डॉ. कुमार विश्वास ने कहा “आचार्य मुझ मूरख को इतना ज्ञान कहाँ ? आप ही चाय की इन दोनों कोटियों से परिचय कराइए ?” आचार्य जी बोले “बेटा ! जो चाय चीनी-मिट्टी के कप में आती है वो चरित्रहीन है, हर बार धुल-पूछ कर नए रूप में, नए साज-सिंगार में आकर नए प्रेमी के अधर-पल्लव को चूमती है ! पर जो चाय कुल्हड़ में पी जाती है वह तो पंचतत्वों से एक बार स्वयं को तपाकर तैयार करती है और किसी अधर से एक बार जब छू जाए तो उसके बाद अपना नश्वर शरीर त्याग देती है और पुनः अग्नि में तपकर नया जन्म लेती है नए प्रेमी के अधर छूने के लिए “
डॉ. कुमार विश्वास कहते है कि पता नहीं उनकी इस व्याख्या का निहितार्थ क्या था पर हाँ उस दिन से कुल्हड़ की चाय से इश्क़ हो गया.!साभार
डॉ. कुमार विश्वास
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