हर कहानी कुछ कहती है... पृष्ठ आठ

हर कहानी कुछ कहती है..  

स साल वर्माजी का सात वर्षीय बेटा कक्षा दूसरी में आ गया.... कक्षा में हमेशा से अव्वल आता रहा है ! पिछले दिनों तनख्वाह मिली तो वे उसे नयी स्कूल ड्रेस और जूते दिलवाने केलिए बाज़ार ले गये !

बेटे ने जूते लेने से ये कह कर मना कर दिया कि पुराने जूतों को बस थोड़ी-सी मरम्मत की जरुरत है वो अभी भी  इस साल काम आ  सकते हैं! 
अपने जूतों की बजाय उसने अपने दादा की कमजोर हो चुकी नज़र के लिए पिताजी  को नया चश्मा बनवाने को कहा !
वर्माजी को लगा वह अपने दादा से शायद बहुत प्यार करता है इसलिए अपने जूतों की बजाय उनके चश्मे को ज्यादा जरूरी समझ रहा है, उन्होने बेटे को कुछ कहना जरुरी नहीं समझा और उसे लेकर ड्रेस की दुकान पर पहुंचे.....दुकानदार ने बेटे के नाप की सफ़ेद शर्ट निकाली ...पहन कर देखने पर शर्ट एकदम फिट थी.....फिर भी बेटे ने थोड़ी लम्बी शर्ट दिखाने को कहा !!!!

वर्मा जी ने बेटे से कहा : बेटा ये शर्ट तुम्हें बिल्कुल सही है तो फिर और लम्बी क्यों ? बेटे नेकहा :पिता जी मुझे शर्ट निक्कर केअंदर ही डालनी होती है इसलिए थोड़ी लम्बी भी होगी तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.......लेकिन यही शर्ट मुझे अगली क्लास में भी काम आ जाएगी ...... पिछली वाली शर्ट भी अभी नयी जैसी ही पड़ी है लेकिन छोटी होने की वजह से मैं उसे पहन नहीं पा रहा !

वर्मा जी  मौन रहे ! घर आते वक़्त उन्होनें  बेटे से पूछा : तुम्हे ये सब बातें कौन सिखाता है बेटा ?
बेटे नेकहा: पिता जी मैं अक्सर देखता हूँ  कि कभी माँ अपनी साडी छोड़कर तो कभी आप अपने जूतों को
छोडकर हमेशा मेरी किताबों और कपड़ो पर पैसे खर्च कर दिया करते हैं ! गली- मोहल्ले में सब लोग कहते हैं के आप बहुत ईमानदार आदमी हैं और हमारे साथ वाले राजू के पापा को सब लोग, बे-ईमान, रिश्वतखोर और जाने क्या क्या कहते हैं, जबकि आप दोनों एक ही ऑफिस में काम करते हैं.....जब सब लोग आपकी तारीफ करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है.....मम्मी और दादा जी भी आपकी तारीफ करते हैं ! पिता जी मैं यह बताना चाहता हूं कि मेरी कोई जरूरत इतनी जरुरी और बड़ी नहीं जिसे पूरी करने के लिए कभी जीवन में आपको चोर, बे-ईमान, रिश्वतखोर बनना पड़े, मैं आपकी ताक़त बनना चाहता हूँ पिता जी आपकी कमजोरी नहीं !

बेटे की बात सुनकर वर्मा जी निरूत्तर थे, आज उन्हें पहली बार अपनी ईमानदारी का इनाम मिला था !!
आज बहुत दिनों बाद आँखों में ख़ुशी, गर्व और सम्मान के आंसू थे...


ह कहानी कहती है कि.... हमेँ हमारी आवश्यकताएँ ओर महात्वाकांक्षाएँ ही गलत रास्ते पर जाने के लिए मजबूर करती हैं  यदि हम उनको ही सीमित कर लेँ तो जीवन ईमानदारी से गुजारा जा सकता हैं...  

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